हे! हिन्द धरा के अमर सूर्य,
हिन्दी के गौरव निशा इंदु।
है नमन तुम्हें, हे! कलमकार,
हिन्दी प्राँगण के केंद्र बिंदु।
तुम हो नक्षत्र देदीप्यमान,
साहित्य जगत के ध्रुव तारे।
पीड़ाओं की परिपाटी पर,
हैं गढ़े चित्र वो सब प्यारे।
तुम स्वयं गूढ़ता हिन्दी की,
तुम ही यथार्थ की परिभाषा।
अद्भुत शब्दों के महारथी,
तुम बने यहाँ नित नव आशा।
तुमने जो हैं किरदार गढ़े,
हैं यहाँ वास्तविक परछाईं।
है लिखा कटु हर सत्य यहाँ,
जो नित करता था अगुवाई।
तुम बने प्रणेता कथाकार,
तुम कलम सिपाही कहलाए।
तुम उपन्यास सम्राट यहाँ,
सिंचित करने हिन्दी आए।
लिख गए तुम्हीं गोदान यहाँ,
तुम दो बैलों की कथा यहाँ।
संघर्षित जीवन के पथ पर,
है लिखी नारी की व्यथा यहाँ।
तुम स्वयं भाव की अभिव्यक्ति,
तुम यहाँ सत्य के परिचायक।
तुम सोजे वतन का मंत्र यहाँ,
तुम बने देश के ही नायक।
तुम हो सजीवता के चित्रण,
तुम सरल सहज जीवंतधार।
तुम कृषक गाँव का हो दर्पण,
तुम कालजयी हो शब्दकार।
सच कहता हूँ, हे! कलमकार,
साहित्य तुम्हारा अग्रणी रहा।
न होगा दूजा प्रेमचंद,
हर शब्द हिन्द का ऋणी रहा।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें