हर साँस के साथ जा रहा हूँ,
मैं तेरे क़रीब आ रहा हूँ।
ये दिल में कराहने लगा कौन,
रो रो के किसे रुला रहा हूँ।
अब इश्क़ को बे-नक़ाब कर के,
मैं हुस्न को आज़मा रहा हूँ।
असरार-ए-जमाल खुल रहे हैं,
हस्ती का सुराग़ पा रहा हूँ।
तन्हाई-ए-शाम-ए-ग़म के डर से,
कुछ उन से जवाब पा रहा हूँ।
लज़्ज़त-कश-ए-आरज़ू हूँ 'फ़ानी',
दानिस्ता फ़रेब खा रहा हूँ।
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