हर कलम यहाँ शमशीर है (गीत)

अपना हर आँगन नेफ़ा है,
हर बगिया कश्मीर है,
स्याही की हर बूँद लहू है,
हर कलम यहाँ शमशीर है।

हम आँगन के रखवारे हैं,
औ' बगिया के माली हैं,
दीपों की आवलियाँ हैं,
हम, फूलों वाली डाली हैं।

ना झंझा से, ये आलोकित,
दीपशिखाएँ बुझ पाएँगी,
न तपती लू से, ये मुकुलित,
पुष्पलताएँ मुरझाएँगी।

रिपु ख़ातिर हर लौ ज्वाला है,
हर गंध यहाँ विषतीर है,
स्याही की हर बूँद लहू है,
हर कलम यहाँ शमशीर है।

है "अशोक" की पुण्य भूमि यह,
राम-कृष्ण का आँगन है,
हर गाँव यहाँ है चित्रकूट,
हर नगर यहाँ वृंदावन है।

अमन प्रियों को पंचशील की,
मृदु तान सुनाई जाएगी,
युद्ध चाहने वालों को पर,
बात ये समझाई जाएगी।

हर बाँह हमारी फ़ौलादी है,
अरिग्रीवा की ज़ंजीर है,
स्याही की हर बूँद लहू है,
हर कलम यहाँ शमशीर है।

श्रीकृष्ण की है यह गीता,
तुलसी की रामायन है,
हिमगिरि की है धवल भव्यता,
गंगा का तट पावन है।

यह गंगा की पावन धारा,
नहीं अपावन हो पाएगी,
हिम की राजकुमारी शुभ्रा,
नहीं भिखारिन हो पाएगी।

कंस हेतु हर बच्चा कान्हाँ है,
रावण ख़ातिर रघुवीर है।
स्याही की हर बूँद लहू है,
हर कलम यहाँ शमशीर है।

हम भारत माँ के बेटे हैं,
इसकी माटी में खेले हैं,
इसी गोद में हँसते-हँसते,
हर तूफ़ाँ को झेले हैं।

पीया जिसका दूध हम ही,
उस माँ की लाज बचाएँगे,
औ' दुश्मन को दूध छठी का,
हम ही याद दिलाएँगे।

हर तरुण यहाँ का वीरशिवा,
औ' राणा की तस्वीर है।
स्याही की हर बूँद लहू है,
हर कलम यहाँ शमशीर है।

अलग-अलग बोलियाँ हमारी,
अलग-अलग पोशाक हैं,
पर संकट के समय हम सभी,
एक धुरी के चाक हैं।

हम पत्थर से बदला लेंगे,
जो हम पर ईंटें फेंकेंगे,
दुश्मन के शव, झौंक आग,
हम, अपने हाथों को सेंकेंगे।

लगती है सीधी सादी,
पर बात बड़ी गंभीर है।
स्याही की हर बूँद लहू है,
हर कलम यहाँ शमशीर है।


लेखन तिथि : 1965-1966
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