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हमें क्या (कविता) Editior's Choice

इतवार के दिन
न मैं उठूँ जल्दी
न तुम

सूर्य उठे केवल
काम पर अपने लगना होगा उसे
दहके कहीं
हमें क्या

आते खिड़की तक हमारी
ठिठुरना ही है उसे


            

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