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एक संभावना गीत (कविता) Editior's Choice

जैसे मैं अस्तिहीन चुप्पी में झरता-झरता खिल जाऊँगा
जैसे मैं फिर किसी गहरे संगीत में लिपट कर रो जाऊँगा
जैसे मैं फिर कभी गहरी नींद में सो जाऊँगा।

जैसे मैं काला अंधड़ झकझोर कर जगा दूँगा
कुछ नहीं, अपनी ही बड़ी-बड़ी आँखें नोच लूँगा—
जैसे मैं अंधा हो, दृष्टि की पिपासा बो जाऊँगा।

जैसे मैं ऋतुओं के ठूँठ
सौ-सौ पतझरी ढलानों
नदियों की सीली अस्थियों
स्वाति-मुख पर घिरे रेतीले मेघों में
छिपी ज़ईफ़ी के ख़ौफ़नाक पंजों में
चूर-चूर हो जाऊँगा।

जैसे मैं गहरे संगीत में लिपट कर फिर-फिर रो जाऊँगा,
जैसे मैं ईश्वर को पैदा कर सदियों की अंधी उदासी में
खो जाऊँगा। ...खो जाऊँगा


रचनाकार : दूधनाथ सिंह
            

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