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एक भावना (कविता) Editior's Choice

इस पुरानी ज़िंदगी की जेल में
जन्म लेता है या मन।
मुक्त नीलाकाश की लंबी भुजाएँ।
हैं समेटे कोटि युग से सूर्य, शशि, नीहारिका के ज्योति-तन।
यह दुखी संसृति हमारी,
स्वन की सुंदर पिटारी
भी इसी को बाहुओं में आत्म-विस्मृत, सुप्त निज में ही
सिमट लिपटी हुई है।
किंतु मन ब्रह्मांड इससे भी बड़ा है
जो कि जीवन कोठरी में जन्म लेता है नया बन
आज इस ब्रह्मांड में ही उठ रहा है।
प्रेरणा का जन्म जीवन-भरा स्पंदन-भरा
आषाढ़ का सुख-पूर्ण धन।
रुग्ण जन-जन,
युद्ध-पथ पर लड़खड़ाता हाँफता
हर चरण पर भीति से बिजली सरीखा काँपता
तोड़ने को आतुर हुआ यह क्षुद्र बंधन।
आँज कर पीले नयन में ज्योति का धुँधला सपन।
जल रहीं प्राचीनताएँ बाँध छाती पर मरण का एक क्षण।
इस अँधेरे की पुरानी ओढ़नी को बेध कर
आ रही ऊपर नए युग की किरण।


            

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