अत्याचार कहने पर प्रतिक्रिया होती है
दुःख कहने पर कोई दिल पसीजता है
दोनों के बीच हिलता
एक धागा छूटता रहता है
भाषा संदिग्ध होती जाती है
कविता लिखते शर्म आती है
न लिखी कविता साथ चलती है
सिर झुकाए
ग़रीब की बेटी की तरह
जैसे जन्म लेकर
मुसीबत में डाल दिया है
किसी को।
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