कहीं भी दाख़िल होते ही
मैं बाहर जाने का रास्ता ढूँढ़ने लगता हूँ
मेरी यही उपलब्धि है कि
मुझे ऐसी बहुत जगहों से
बाहर निकलना आता है
जहाँ दाख़िल होना मेरे लिए नहीं मुमकिन
कि मैं तेरह ज़बानों में नमस्ते
और तेईस में अलविदा कहना जानता हूँ
कोई बोलने से ज़्यादा हकलाता हो
चलने से ज़्यादा लँगड़ाता हो
देखने से ज़्यादा निगाहें फेरता हो
जान लो मेरे ही क़बीले से है
मेरी बीवी—जैसा कि अक्सर होता है—
मुख़्तलिफ़ क़बीले की है
उससे मिलते ही आप उसके
मुरीद हो जाएँगे
देखना एक रोज़ यह बातूनी चुड़ैल
हँसते-हँसते मेरा ख़ून पी जाएगी।
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