देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

दूसरी तरफ़ (कविता) Editior's Choice

कहीं भी दाख़िल होते ही
मैं बाहर जाने का रास्ता ढूँढ़ने लगता हूँ

मेरी यही उपलब्धि है कि
मुझे ऐसी बहुत जगहों से
बाहर निकलना आता है
जहाँ दाख़िल होना मेरे लिए नहीं मुमकिन

कि मैं तेरह ज़बानों में नमस्ते
और तेईस में अलविदा कहना जानता हूँ

कोई बोलने से ज़्यादा हकलाता हो
चलने से ज़्यादा लँगड़ाता हो
देखने से ज़्यादा निगाहें फेरता हो
जान लो मेरे ही क़बीले से है

मेरी बीवी—जैसा कि अक्सर होता है—
मुख़्तलिफ़ क़बीले की है
उससे मिलते ही आप उसके
मुरीद हो जाएँगे

देखना एक रोज़ यह बातूनी चुड़ैल
हँसते-हँसते मेरा ख़ून पी जाएगी।


रचनाकार : असद ज़ैदी
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें