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दुख-पुराण (कविता) Editior's Choice

नीले आकाश में उड़ती
चिड़ियों के हार से
जो चिड़ियाँ पीछे छूट जाती हैं

चरते हुई गायों के झुंड से
कोई बछड़ा पीछे रह जाता है
गड़रिए के बार-बार
टिटकारने के बावजूद भी
भेड़ों के गोल से
जो भेड़ छूट जाती है

बीच जंगल में भागते वक़्त
हिरणों के झुंड में
बार-बार शामिल रहने की
कोशिश करके भी
जो हिरण हार जाता है

सब चले जाते हैं
और जो छूट जाता है
गहराती साँझ में नदी में नाव चल देती है
माँझी को पुकारता कोई किनारे छूट जाता है
जो अदमी संगत, पंगत और विकास से छूट जाता है
जो टूट जाता है, जो हार जाता है

उसके दुख पर मैं लिखना चाहता हूँ
एक पुराण
अब तक के पुराणों से अलग
पुराणों के अर्थ को तोड़ता
छूट गए लोगों के दुखों की एक दास्तान!


रचनाकार : बद्री नारायण
            

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