देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

देहगंध (कविता) Editior's Choice

भागते-भागते मेरी आँखें
ग़र्दों-ग़ुबार में लाल हो गई हैं
मेरा चश्मा भागने के फेर में
घर छूट गया और कई बेहद ज़रूरी सामान
जैसे दवाइयाँ, पानी, कपड़े-लत्ते और खाना

मैं देख नहीं पा रही और सरहद दूर है बहोत
बस सिर ऊँचा किए
किसी तरह भाग रही हूँ उस सिम्त
जिधर निकला है मेरा ख़ाविंद
आसरे की तलाश में

शुक्र है कि यह घरेलू कुत्ता है
जो पहुँचा देगा हर हाल में
सूँघते देहगंध उनकी।


            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें