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देह की दूरियाँ (कविता) Editior's Choice

निर्जन दूरियों के
ठोस दर्पणों में चलते हुए
सहसा मेरी एक देह
तीन देह हो गई
उगकर एक बिंदु पर
तीन अजनबी साथ चलने लगे
अलग दिशाओं में
—और यह न ज्ञात हुआ
इनमें कौन मेरा है!


            

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