दुनिया में छाया कोरोना का अंधकार है,
चारों दिशाओं में इसने मचाया हाहाकार है।
मानव की कोई भूल या प्रकृति की मार है,
यह कैसी त्रासदी से जूझ रहा संसार है।
वैज्ञानिकों-चिकित्सकों का, परिश्रम भी सब व्यर्थ है,
सारी औषधि, सब उपाय इसके सामने असमर्थ है।
जाने कैसी फैली यह, कोरोना की महामारी है,
कितनी जटिल यह प्राणघातक बीमारी है।
पलायन को मजबूर, लोगों से छिन रहा घर-बार,
कब तक करें, सब ठीक होने का इंतज़ार।
मिलना जुलना बंद है सबसे, बंद सारे रोज़गार,
कब तक घर में बंद रहें, कैसे चले परिवार।
कोई राह सूझती नहीं, छाया हर ओर अंधकार,
अब तो ख़त्म होने को है प्राणवायु का भंडार।
ऊपरवाले अब आप ही, कोई तो राह दिखा दो
जगतपिता इस महामारी से, संसार को बचा लो।
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