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चाँदनी (कविता) Editior's Choice

चाँदी की झीनी चादर-सी
फैली है वन पर चाँदनी।
चाँदी का झूठा पानी है
यह माह-पूस की चाँदनी।
खेतों पर ओस-भरा कुहरा,
कुहरे पर भीगी चाँदनी;
आँखों में बादल-से आँसू,
हँसती है उन पर चाँदनी।
दु:ख की दनिया पर बुनती है
माया के सपने चाँदनी।
मीठी मुस्कान बिछाती है
भीगी पलकों पर चाँदनी।
लोहे की हथकड़ियों-सा दु:ख,
सपनों-सी झूठी चाँदनी;
लोहे से दु:ख को काटे क्या
सपनों-सी मीठी चाँदनी।
यह चाँद चुरा कर लाया है
सूरज से अपनी चाँदनी।
सूरज निकला, अब चाँद कहाँ?
छिप गई लाज से चाँदनी।
दु:ख और कर्म का यह जीवन,
वह चार दिनों की चाँदनी।
यह कर्म-सूर्य की ज्योति अमर,
वह अंधकार की चाँदनी।


            

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