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भ्रष्टाचार पेट पर (कविता) Editior's Choice

कवि जिमि मंच पर, भूखा जिमि लंच पर,
जिमि सरपंच पर न्याय का ख़ुमार है।
कामदेव मन पर मन गोरे तन पर,
जिमि मूलधन पर ब्याज अख़बार है।
पंडा जिमि घाट पर आलसी ज्यों खाट पर,
चंबल की बाट पर जैसे बटमार है।
श्वान जिमि गेट पर काला धन सेठ पर,
मंत्री जी के पेट पर बैठा भ्रष्टाचार है।


            

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