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भीतर के अँधेरे में (कविता) Editior's Choice

दीवार थी मेरे देखने पर दीवार न रही
देखना दीवार हो गया

हाथ लगाया
फफक पड़ी

कोई चेहरा था जाने कैसा किसका
अँगुलियाँ फिराई
वे सिसकने लगीं

मेरे पीछे कोई सर पर हाथ रखे
बैठा था उकड़ू

भीतर के अँधेरे में डबडबाता
मैं न था
कभी अँधेरा न था
डबडबान थी डबडबान में डबडबाती


रचनाकार : अनिरुद्ध उमट
            

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