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भाषा की लहरें (कविता) Editior's Choice

भाषाओं के अगम समुद्रों का अवगाहन
मैंने किया। मुझे मानव जीवन की माया
सदा मुग्ध करती है, आहोरात्र आवाहन
सुन सुनकर धाया-धूपा, मन में भर लाया
ध्यान एक से एक अनोखे। सब कुछ पाया
श्ब्दों में, देखा सब कुछ ध्वनि रूप हो गया।
मेघों ने आकाश घेरकर जी भर गया।
मुद्रा, चेष्टा, भाव, वेग, तत्काल खो गया,
जीवन की शय्या पर आकर मरण सो गया।
सब कुछ सब कुछ सब कुछ सब कुछ सब कुछ भाषा।
कवि मानव का, जगा गया नूतन अभिलाषा।

भाषा की लहरों में जीवन की हलचल है,
ध्वनि में क्रिया भरी है और क्रिया में बल है।


रचनाकार : त्रिलोचन
            

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