बंदिश में जीना मरना है,
फिर क्यों बंदिश से डरना है।
सोच लिया है इसीलिए अब,
जो मन कहता वह करना है।
दुख की गहरी झील हुआ दिल,
अधिक न अब इसको भरना है।
अश्क बनो हर दुख से कह दें,
आँखों से जीभर झरना है।
अपना-अपना हित है सबका,
दोष किसी पर क्यों धरना है।
दुनिया से उम्मीद न कीजे,
अपना संकट ख़ुद हरना है
मोह न पाल किसी से 'अंचल',
इक दिन इस भव से तरना है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें