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बजतीं हैं फल्लियाँ (नवगीत)

जागे हैं खेतिहर
अगहन में।

जोतेंगे खेत
बैल नहे हल।
है साँझ लौटे
चिड़ियों के दल।।

पोई की पत्तियाँ
अरहन में

बजतीं हैँ फल्लियाँ
अरहर की।
बुरा वक़्त ठोकरें
दर-दर की।।

लाँक बनेगी आज
दलहन में।


लेखन तिथि : 20 सितम्बर, 2021
            

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