जागे हैं खेतिहर
अगहन में।
जोतेंगे खेत
बैल नहे हल।
है साँझ लौटे
चिड़ियों के दल।।
पोई की पत्तियाँ
अरहन में
बजतीं हैँ फल्लियाँ
अरहर की।
बुरा वक़्त ठोकरें
दर-दर की।।
लाँक बनेगी आज
दलहन में।
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