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अश्व-गंध (कविता) Editior's Choice

हवाओं में एक उन्मत्त अश्व-गंध
जिसका पीछा करते पूरी तहज़ीब
आदिम हुए जाती है :

गुफाओं में कौन ईजाद कर रहा है
हर चेहरे में भील। सड़क के क़ायदों में जो नहीं लिखा है
वह आज इमारतों पर लिख रहा है इतिहास
पत्थर उठाने के सिवाय
इंसानियत को मोहलत दे देने का कौन-सा प्रायश्चित है

हर उठता हुआ हाथ सूर्योदय है। हर ठहरा क़दम मक़बरा
जिसके मुनासिब जो है वह उसकी तारीख़
पागल घोड़ों की
आदिम-गंध तहज़ीब किए जाती है
हवाओं की हरकत को।


रचनाकार : सुदीप बनर्जी
            

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