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अपना आप (कविता) Editior's Choice

लगा जब
भूल रहा हूँ सब
न भूलने ने तब
बहुत मारा

दो दीवारों बीच
जैसे
ढह गई हो रात

अपना आप उठाया
और
चीलों के
हवाले
कर
दिया


रचनाकार : अनिरुद्ध उमट
            

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