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अँगूठा छाप नेता (कविता) Editior's Choice

चपरासी या कलर्क जब करना पड़े तलाश।
पूछा जाता—क्या पढ़े, कौन क्लास हो पास?
कौन क्लास हो पास, विवाहित हो या क्वारे।
शामिल रहते हो या मात-पिता से न्यारे?
कह ‘काका’ कवि, छान-बीन काफ़ी की जाती।
साथ सिफ़ारिश हो, तब ही सर्विस मिल पाती॥

कर्मचारियों के लिए, है अनेक दुख-द्वंद्व।
नेताजी के वास्ते, एक नहीं प्रतिबंध॥
एक नहीं प्रतिबंध, मंच पर झाड़े लेक्चर।
वैसे उनकी भैंस बराबर काला अक्षर॥
कह ‘काका’, दर्शन करवा सकता हूँ प्यारे।
एम.एल.ए. कई, ‘अँगूठा छाप’ हमारे॥


            

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