देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

अंगारों को यूँ जिनके सीने में धड़कते देखा है (नज़्म)

अंगारों को यूँ जिनके सीने में धड़कते देखा है,
मेहनत कशी से वक्त फिर उनको बदलते देखा है।
ये राह आसाँ तो नहीं पर लेना तुमको दम नहीं,
चिंगारी से भी हमने सहरा को सुलगते देखा है।
यूँ चाहे सर्दी का सितम हो या गर्दिश का साया हो,
विरानी में भी हमने फूलों को महकते देखा है।
दुश्मन नहीं तेरा कोई तू ही तेरे ख़िलाफ़ है,
तारीक रातों में ही जुगनू को चमकते देखा है।
गर तिश्नगी दिल में भरी तो सावन की फिर बात क्या,
हमने यहाँ बादल को बे-मौसम बरसते देखा है।
मंज़िल की तलाशों में मशक़्क़त यूँ मुसल्सल रख 'सुराज',
नाज़ुक जलधारों से चट्टानों को पिघलते देखा है।


  • विषय :
लेखन तिथि : 2024
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें