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अमर जवान (कविता) Editior's Choice

सरहद पर हैं मुस्तैद फ़ौजी, सोए जनता चैन।
आधा सोए आधा जागे, हैं सीमा पर नैन।।
कभी नहीं धीरज खोता है, गर्मी ठंड बरसात।
कोख धन्य होती सपूत से, रहे दमकता गात।।

शहीद होता जवान कोई, ग़मगीन हिन्दुस्तान।
दुखी बहुत होते है सब ही, जवान हुए क़ुर्बान।।
साधु जब एक तप करता है, प्राप्त सिद्धियाँ होय।
इक सैनिक अति तप करता है, प्राप्त कुछ कब होय।।

लालच नहीं रहे कुछ उसको, जीवन पूर्ण समाज।
सच्चा तपस्वी वही होता है, सेवा सच्ची समाज।।
सैनिक क‌ई शहीद हो गए, भारत में था शोक।
शहीद स्मारक बात चली तो, प्रशन्न हुआ भू लोक।।

अमर जवान ज्योति इकहत्तर में, हुआ शुरू निर्मान।
राजपथ इण्डिया गेट नीचे, चौरा अमर जवान।।
लगी शीर्ष पर राइफ़ल है, फ़ौज टोप अनजान।
बलिदान किया तन मन क्षमता, शहीद जीवन प्रान।।

शहीद स्मारक अगल-बगल में, रखे कलश हैं चार।
एक कलश चौबीसों घंटे, ज्योति करे उजार।।
बहत्तर में उद्घाटन हो गया, इन्दिरा जी के हाथ।
चार कलश प्रज्ज्वलित कर दिए, फैल ग‌ई है गाथ।।

सम्मान में शीश झुकता है, की पुष्पांजलि प्रदान।
नारों से आकाश गूँजता, शहीद दिया सम्मान।।
जाँबाज़ सैनिक ये हमारे, भारत की हैं शान।
जवान भारत का गौरव 'श्री', जय-जय अमर जवान।।


            

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