अकेला तू आया है अकेला ही तू जाएगा,
ये कटुसत्य वचन न जाने कितनी बार।
महापुरुषों ने अवतरित हो,
हमें बार-बार समझाया है।
अकेला का महत्व सिर्फ़ जन्म-मृत्यु से नहीं,
बल्कि हर क्षेत्रों में इसका महत्व समाया है।
जो भी व्यक्ति जीवन पथ पर चला अकेला,
दिग्विजयी का ताज अपने सिर पर पाया है।
अपनी स्मृतियाँ को गर हम सब याद करें,
क्या मंज़िल किसी और के बल पर पाएँ हैं।
देखें हैं हम सबने एक से एक विश्व विजेता,
उनके कारनामों में एक अकेला चलते पाएँ हैं।
जीवन के हर क्षेत्र में इसकी तूती बोलती है,
व्यक्ति से देश तक पर यह अमल होती है।
अपने को सामर्थ्य बना जो बढ़ा अकेला,
दुनिया चल देती है करती उसका पीछा।
परिवार भी इससे कहाँ रहा है कभी अछूता,
स्वावलंबी का ही कद्र घर में होती हमेशा।
पति-पत्नी के मधुर रिश्ता पर भी स्वावलंबी,
अग्रणी अवर पर हावी हो जाती हमेशा।
उस देश को ही दुनिया मे सिर्फ़ महत्व मिलती,
जो आत्मनिर्भर बन दुनिया को चलाती।
अकेला चल बने यशस्वियों की है लम्बी क़तार,
पर जो समझे और चले उस पर, है यही बड़ी बात।
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