ऐ सावन! तेरे रूप हैं कितने?
कोई कहे तुझे बेदर्दी रे,
कोई सजाए मीठे सपने,
ऐ सावन! तेरे रूप हैं कितने?
ख़्वाबों की ताबीर किसी की
पूरी होती सावन में।
कोई विरहन बाट जोहती,
अपने मन के आँगन में।
बरखा बादल बिजली पुरवा,
किसी को लागें सब अपने।
ऐ सावन! तेरे रूप है कितने?
कोई कहे तुझे बेदर्दी रे,
कोई सजाए मीठे सपने।
किसी को लागे गजब सलोना,
इश्क़ न चाहे तुझको खोना।
किसी का सूना मन का कोना,
प्रियतम की फ़रियाद में रोना।
जोग का रोग लगाए कोई,
कोई पहने है प्यार के गहने।
ऐ सावन! तेरे रूप हैं कितने?
कोई कहे तुझे बेदर्दी रे,
कोई सजाए मीठे सपने।
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