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आसमान तुम्हारे कितने तारे (कविता) Editior's Choice

आसमान, तुम्हारे कितने तारे
तुम्हें परेशान करते हैं,
जंगल, तुम कितने पेड़ों से उदास होते हो
नदी, तुम्हारा कितना पानी दरकिनार हो जाता है?

मैं आसमान का समकालीन
तारों का हमराह नहीं
जंगल का बाशिंदा हूँ
पेड़ों पर नहीं चढ़ता
लकड़हारा भी नहीं

नदी के मर्मस्थल का साकिन
मछलियों के उल्लास से ग़ाफ़िल।


रचनाकार : सुदीप बनर्जी
            

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