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सवैया छंद
राम
सुशील कुमार
राम के नाम सा नाम नहीं जग संत कहें श्रुति चारि बखानी, राम कथानक राम स्वयं बिन राम नहीं कहीं राम कहानी। राम बिना नहि
मात कहै मेरो पूत सपूत है
गंग
मात कहै मेरो पूत सपूत है, भैन कहै मेरो सुंदर भैया। तात कहै मेरो है कुलदीपक, लोक में लाज रु धीरबँधैया। नारि कहै मेरो
रैन भए दिन तेज छिपै अरु
गंग
रैन भए दिन तेज छिपै अरु सूर्य छिपै अति-पर्ब के छाए। देखत सिंह छिपै गजराज, सो चंद छिपै है अमावस आए। पाप छिपै हरिनाम ज
जो कहौं केशव सोम सरोज
केशव
जो कहौं केशव सोम सरोज सुधासुर भृंगन देह दहे हैं। दाड़िम के फल शेफलि विद्रुप हाटक कोटिक कष्ट सहे हैं॥ कोक, कपोत, कर
सोने की एक लता तुलसी बन
केशव
सोने की एक लता तुलसी बन क्यौं करणों सु न बुद्धि सकै छ्वै। केशवदास मनोज मनोहर ताहि फले फल श्रीफल से ब्बै॥ फूलि सरोज
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