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रुबाई
भाए जो निगाह को वही रंग अच्छा
अकबर इलाहाबादी
भाए जो निगाह को वही रंग अच्छा लाए जो राह पर वही ढंग अच्छा क़ुरआन-ओ-नमाज़ से अगर दिल न हो गर्म हंगाम-ए-रक़्स-ओ-मुतरिब
हर एक से सुना नया फ़साना हम ने
अकबर इलाहाबादी
हर एक से सुना नया फ़साना हम ने देखा दुनिया में एक ज़माना हम ने अव्वल ये था कि वाक़फ़ियत पे था नाज़ आख़िर ये खुला कि
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