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निबंध
धोखा
प्रतापनारायण मिश्र
इन दो अक्षरों में भी न जाने कितनी शक्ति है कि इनकी लपेट से बचना यदि निरा असंभव न हो तो भी महाकठिन तो अवश्य है। जब कि भ
एक
प्रतापनारायण मिश्र
इस अनेकवस्त्वात्मक विश्व का कर्ता, धरता, भर्ता, हर्ता परमेश्वर एक है। उसके मिलने का मार्ग प्रेम ही केवल एक है
क्रोध
चतुरसेन शास्त्री
सिर्फ़ हज़ार रुपये ही की तो बात थी। वह भी नहीं दे सका। देना एक ओर रहा, पत्र का उत्तर तक नहीं दिया। एक-दो-तीन-चार, सब पत्
रसमादन
शिव प्रसाद सिंह
गरमी की छुट्टी हो, या किसी पर्व-त्योहार का समय, जहाँ भी नियमित ढंग से चलते हुए कार्यों से बचने का मौक़ा हाथ लगे, मेरे म
इतस्तत:
जैनेंद्र कुमार
पाप का सवाल एक बहुत बड़ा सवाल है। पाप समाप्त हो तो धर्म अनावश्यक हो जाता हैं। परम आस्तिक और परम नास्तिक दर्शन यही कह
उत्साह
रामचंद्र शुक्ल
दुःख के वर्ग में जो स्थान भय का है, आनंद वर्ग में वही स्थान उत्साह का है। भय में हम प्रस्तुत कठिन स्थिति के निश्चय से
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?
भारतेंदु हरिश्चंद्र
आज बड़े आनन्द का दिन है कि छोटे से नगर बलिया में हम इतने मनुष्यों को एक बड़े उत्साह से एक स्थान पर देखते हैं। इस अभागे आ
विश्वगुरु बनने की राह पर भारत
रतन कुमार अगरवाला
भारत सदा ही विश्वगुरु रहा है जिसका केंद्र बिंदु आध्यात्म रहा है। अध्ययन, आराध्य और आध्यात्म का समायोजन भारत को फिर
ओटीटी (ओवर-द-टॉप): एंटरटेनमेंट का नया प्लेटफॉर्म
सलिल सरोज
ओवर-द-टॉप (ओटीटी) मीडिया सेवा ऑनलाइन सामग्री प्रदाता है जो स्ट्रीमिंग मीडिया को एक स्टैंडअलोन उत्पाद के रूप में पे
लॉकडाउन और बढ़ती बेरोज़गारी
संस्कृती शाबा गावकर
क्या कोरोना के फैलने के ख़ौफ़ से देशभर में लॉकडाउन की स्थिति पैदा कर बेरोज़गारी को जन्म दिया? दुनियाभर में फैले कोरोन
ह्यूमर उर्फ़ हास्य
अमृत 'शिवोहम्'
ह्यूमर; जी हाँ यही वह शब्द है जो सदा से प्रचलन में तो है, मगर जिसके बारे में अभी तक ज़्यादा लिखा नहीं गया है। अंग्रेजी
शिक्षित बेरोज़गारी की समस्या
संस्कृती शाबा गावकर
"तड़प रही है भूखी जनता, विकल मनुजता सारी। भटक रहे है नवयुवक देश के, लिए उपाधियाँ भारी॥ काम नहीं, हो रहे निकम्मे, भारत क
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