ज़हन होगा प्रखर अब तो,
सुहाना है सफ़र अब तो।
यहाँ माहौल ऐसा है,
सुख़न की है लहर अब तो।
ख़ुशी से हैं लबालब पल,
हुए उत्सव पहर अब तो।
कहानी बन गई उनकी,
पराया सा शहर अब तो।
कहाँ तक पथ निहारूँ मैं,
न कोई है ख़बर अब तो।

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएप्रबंधन 1I.T. एवं Ond TechSol द्वारा
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें
