यूँ न खेला करो दिल के जज़्बात से (ग़ज़ल)

यूँ न खेला करो दिल के जज़्बात से।
ज़िन्दगी थक गई ऐसे हालात से।।

रोज़ मिलते रहे सिर्फ़ मिलते रहे,
अब तो जी भर गया इस मुलाक़ात से।

ख़्वाब में आता हँसता लिपटता सनम,
हो गई आशनाई हमें रात से।

गा रहा था ये दिल हँस रही थी नज़र,
क्या पता आँख भर आई किस बात से।

इल्म और फ़न को अब पूछता कौन है,
पूछे जाते यहाँ लोग औक़ात से।


लेखन तिथि : 1975
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