साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
कैमूर, बिहार
1959
यूँ न खेला करो दिल के जज़्बात से। ज़िन्दगी थक गई ऐसे हालात से।। रोज़ मिलते रहे सिर्फ़ मिलते रहे, अब तो जी भर गया इस मुलाक़ात से। ख़्वाब में आता हँसता लिपटता सनम, हो गई आशनाई हमें रात से। गा रहा था ये दिल हँस रही थी नज़र, क्या पता आँख भर आई किस बात से। इल्म और फ़न को अब पूछता कौन है, पूछे जाते यहाँ लोग औक़ात से।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें