साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
1896 - 1982
ये माना ज़िंदगी है चार दिन की बहुत होते हैं यारो चार दिन भी
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