ये माना उस तरफ़ रस्ता न जाए (ग़ज़ल)

ये माना उस तरफ़ रस्ता न जाए,
मगर फिर भी मुझे रोका न जाए।

बदल सकती है रुख़ तस्वीर अपना,
कुछ इतने ग़ौर से देखा न जाए।

उलझने के लिए सौ उलझनें हैं,
बस अपने आप से उलझा न जाए।

इरादा वापसी का हो अगर तो,
बहुत गहराई में उतरा न जाए।

हमारी अर्ज़ बस इतनी है 'दानिश',
उदासी का सबब पूछा न जाए।


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