साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
पंचकुला, हरियाणा
1976
यह जो स्वतंत्रता दिवस है। कितने जीवन भूनने पर, और कितने घर फूँकने पर, दृशित यह वरदान हुआ। सुभाष की आशा का, बिस्मिल की भाषा का। गुंजित सुगान हुआ। टुकड़ों के, ज़ख़्मों से थी, आहत माँ भारती। भरे मन से, जन ने, की थी आरती। भारत की अक्षुण्णता का, विघटन की पीड़ा का, भान रहे। सदा भारत की शान रहे।
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