वेदना के इन स्वरों को
एक अपना गान दे दो,
भटके हुए जो राहों से
उनको भी ज्ञान दे दो।
हम चले हैं राह पर
यूँ लड़खड़ाते हुए,
मिलती नहीं मंज़िल
एक अंजाम दे दो।
आज मुश्किल है
हमराही बिना चलना,
थामो हाथ चाहे
तकलीफ़ तमाम दे दो।
नासूर बन जाता है
पुराना घाव यूँ ही,
मुश्किल हो दवा देना
तो दर्द आम कर दो।
आज मुश्किल से मिली
किसी मन मे मानवता,
कम न हो ये कभी
आज वरदान दे दो।
रूठते रहते हैं वो
अपनो से 'प्रवल',
मना लो वक़्त रहते
दिल को आराम दे दो।

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