वह एक साथ
पहुँचना चाहता था
वीरगंज
हावड़ा
और भुसावल
वह फेंक रहा था
अपने को
यहाँ-वहाँ
लगातार
छोड़ता हुआ
अपने को
कहीं
और कहीं
और कहीं
उसे दूरियाँ बहुत
परेशान करती थीं
वह तुरंत पहुँचना चाहता था
सृष्टि के ओर-छोर तक
चलने या उड़ने के सारे साधनों को
अपर्याप्त पाकर
वह हताश था
इतना वक़्त भला किसके पास
हो सकता है कि वह
दूसरों के बनाए हुए नियम से
पहुँचे
वीरगंज
हावड़ा और
भुसावल

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