वक़्त बहुत ही शर्मिंदा है (ग़ज़ल)

वक़्त बहुत ही शर्मिंदा है,
आतंक अभी भी ज़िंदा है।

फूल बहुत कोमल होता है,
जैसे अब खार दरिंदा है।

मैने जन गण मन से पूँछा,
वो भारत का बाशिंदा है।

महलों से अच्छे हैं कोटर,
करता आराम परिंदा है।

लाख टके की बात करी औ,
उनकी हर बात चुनिंदा है।


लेखन तिथि : 2 जनवरी, 2020
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अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
तक़ती: 22‌ 22 22 22
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