भला कैसे कोई समझें
मेरे किरदार को
जब हो रही हो
इम्तिहान प्यार की
वह बेज़ुबान
बेगुनाह था
भरी महफ़िल में
जिसे स्वीकार था
वह ज़िंदा होगा
यह सोचना
कितना मुश्किल होगा
गुज़र जाने के बाद...!!

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