दु:ख इतना पारदर्शी होता है
कोई भी झाँक सकता है
उसमें
आप अपने दु:ख में इतने दूरस्थ दिखते हैं
कि आपका दु:ख
एक साधारण घटना बन जाता है
और आपके दु:ख को झाँककर देखने वाला
दूसरी ओर देखने लगता है
जहाँ कोई दु:ख सहता दिखता नहीं
और यह दु:ख एक चट्टान हो जाता है
जिसके आर-पार
न तो कुछ दिखता है उसको
जिसने थोड़ी देर के लिए
तुम्हारे दु:ख को देखा था
और वह उसे भूल गया