पदार्थ प्यारा प्राणों से समझो सुहृद सब,
मृग-मरीचिका मरुस्थल माय कहा है।
इतराता इंसान परवाह प्राण की नहीं,
रंगहीन रूहानी जन जीवन कहा है।
प्रकृति पुकारती पढ़ाती पाठ पहचानो,
बिना जीवन जीवन जहन्नुम कहा है।
व्यर्थ बहे बूँद-बूँद पानी पानी न “मारुत”,
मानव काया का कतरा-कतरा बहा है॥
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