आज का दिन
एक वृक्ष की भाँति जिया
और प्रथम बार वैष्णवी संपूर्णता लगी।
अपने में से फूल को जन्म देना
कितना उदात्त होता है
यह केवल वृक्ष जानता है,
और फल—
वह तो जन्म-जन्मांतरों के पुण्यों का फल है।
स्तवक के लिए
जब एक शिशु ने फूल नोंचे
मुझे उन शिशु-हाथों में
देवत्व का स्पर्श लगा।
कितना अपार सुख मिला
जब किसी ने
मेरे पुण्यों को फल समझ
ढेले से तोड़ लिया।
किसी के हाथों में
पुण्य सौंप देना ही तो फल-प्राप्ति है,
सिंधु को नदी
अपने को सौंपती ही तो है।
सच आज का दिन
एक वृक्ष की भाँति जिया
और प्रथम बार वानस्पतिक समर्पणता जगी।

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