वीर सपूत (कविता)

वीर सपूतों का जज़्बा था वह,
जो लड़ गए सीमा पर शत्रु से।
अपने प्राणों की परवाह न कर,
टूट पड़े सरहद पर शत्रु पे।

हथेली पर अपनी लेकर मौत,
हिम चोटी पर जुटे वे अटल।
दुश्मनों को मार भगाया,
झंडा थामे रहे सब अचल।

कारगिल पर डटे सकल,
युद्ध लड़े अविराम अविकल।
बजाई जीत की दुंदुभी,
लगाई ठिकाने शत्रु की अकल।

पुलवामा का लिया बदला,
दुश्मनों के कैंप किए ध्वस्त।
“हमारे हाथों देश सुरक्षित”
कहकर जनगण को किया आश्वस्त।

उरी में उनको मारा घुसकर,
किया शत्रुओं को नेस्तनाबूद।
बाल न बाँका कर सके कोई,
ऐसे हैं यह राष्ट्र के सपूत।

अक्षरधाम पर हुआ हमला,
वीरों ने संभाली कमान।
जीत ली इन्होंने यह भी जंग,
बचाया राष्ट्र का मान सम्मान।

देश सेवा में जुटे रहते सदा,
हो धूप-बारिश, या हो ठंड।
करते सरहदों की रखवाली,
शत्रु इनसे सदा डरते प्रचंड।

तन पर सदा पहनते वर्दी,
रहते तैयार ओढ़ने को कफ़न।
राष्ट्र भाव से रहें ओतप्रोत,
ख़ुद से प्यारा ख़ुद का वतन।

देश के अंदर भी लड़ना पड़े,
भरा है जो देश हैवानों से।
सरहद पर तो लड़ते ही रहते,
अंदर भी लड़ते ग़द्दारों से।

परिवार भी धन्य हैं इनका,
त्याग भाव से भरे सभी।
माँ भेजती तिलक लगाकर,
“जा जीतले पुत्र तू रण भूमि”।

अपार साहस से सहचरी,
करती अपने पति को विदा।
कहती उससे यही हरदम,
“सिंदूर का मान रखना सदा”।

बच्चे भी इनके न घबराते,
देते मिट्टी की सौगंध।
“कहते पापा जाओ तुम तो,
जीतलो शत्रु से सारे द्वंद”।

बहन भी बाँधती कलाई में,
राखी का पावन रक्षा कवच।
कहती रखना बहन का मान,
दिखाना युद्ध में अदम्य साहस।

ऐसे जुड़ते सब के भाव,
ढेरों आशीष लेके चलते।
सभी बढ़ाते उनका मनोबल,
सारे शत्रु हैं इनसे घबराते।

या तो मार गिराए शत्रुको,
या तो अंत में पहने कफ़न।
चाहते यही हर हाल में वे,
अपनी मिट्टी के लिए हो दफ़न।

नमन करता हूँ इन वीरों को,
देश के सभी रणबाँकुरों को।
नमन करती इस देश की धरती,
इन वीर सपूत बहादुरों को।


लेखन तिथि : 17 जुलाई, 2021
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