आसमान रूठ गया,
हुई धरती लहूलुहान।
जानवर भी रो रहें,
पेड़ हुए निष्प्राण।
पहाड़ मिट रहें,
सुख रही नदियाँ।
जाने कहाँ गई वो,
हरी भरी वादियाँ।
आओ मिलकर पेड़ लगाएँ,
धरा को करें हरा भरा।
आने वाली पीढ़ी को दें,
इक हरी भरी वसुंधरा।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें