वसुंधरा (कविता)

आसमान रूठ गया,
हुई धरती लहूलुहान।
जानवर भी रो रहें,
पेड़ हुए निष्प्राण।

पहाड़ मिट रहें,
सुख रही नदियाँ।
जाने कहाँ गई वो,
हरी भरी वादियाँ।

आओ मिलकर पेड़ लगाएँ,
धरा को करें हरा भरा।
आने वाली पीढ़ी को दें,
इक हरी भरी वसुंधरा।


लेखन तिथि : 1 अप्रैल, 2021
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मानव द्वारा हो रही प्रकृति की अवहेलना पर विह्वल हो कर रतन कुमार अगरवाला द्वारा प्रस्तुत उनकी पहली छोटी सी रचना। रचना के साथ जो चित्र संलग्न है, वह उनके द्वारा ही अंकित किया गया है।
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