वर वनिता (कविता)

वर वनिता है नहीं अति कलित कुंतल वाली।
भुवन-मोहिनी-काम-कामिनी-कर-प्रतिपाली।

विधु-वदनी, रसभरी, सरस, सरहोरुह-नयनी।
अमल अमोल कपोलवती कल कोकिल-बयनी।

उत्तम कुल की वधू उच्च कुल-संभव-बाला।
गौरव गरिमावती विविध गुण गण मणिमाला।

हाव भाव विभ्रम विलास अनुपम पुत्तलिका।
रुचिर हास परिहास कुसुमकुल विकसित कलिका।

सुंदर बसना बनी ठनी मधुमयी फबीली।
भाग भरी औ राग-रंग अनुराग-रँगीली।

अलंकार-आलोक-समालोकित मुद-मूला।
नीति-रता संयता बहुविकचता अनुकूला।

है वह वर वनिता जो रहे, जन्मभूमि-हित में निरत।
हो जिसका जन-हित जाति-हित, जग-हित परम पुनीत व्रत॥


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