उन को रुस्वा मुझे ख़राब न कर
ऐ दिल इतना भी इज़्तिराब न कर
आमद-ए-यार की उमीद न छोड़
देख ऐ आँख मैल-ए-ख़्वाब न कर
मिल ही रहती है मय-परस्त को मय
फ़िक्र-ए-नायाबी-ए-शराब न कर
नासेहा हम करेंगे शरह-ए-जुनूँ
दिल-ए-दीवाना से ख़िताब न कर
शौक़ यारों का बे-शुमार नहीं
सितम ऐ दोस्त बे-हिसाब न कर
दिल को मस्त-ए-ख़याल-ए-यार बना
लब को आलूदा-ए-शराब न कर
रख बहर-हाल शग़्ल-ए-मय 'हसरत'
इस में परवा-ए-शेख़-ओ-शाब न कर
अगली रचना
अपना सा शौक़ औरों में लाएँ कहाँ से हमपिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें