साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
बिजनौर, उत्तर प्रदेश
1970
उड़ने की आरज़ू में हवा से लिपट गया पत्ता वो अपनी शाख़ के रिश्तों से कट गया ख़ुद में रहा तो एक समुंदर था ये वजूद ख़ुद से अलग हुआ तो जज़ीरों में बट गया अंधे कुएँ में बंद घुटन चीख़ती रही छू कर मुंडेर झोंका हवा का पलट गया
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