तुम्हारा हर दिन का रूठना गंवारा नहीं लगता (शेर)

तुम्हारा हर दिन का रूठना गंवारा नहीं लगता,
मेरा हर दिन का मनाना प्यारा नहीं लगता।


रचनाकार : प्रवीन 'पथिक'
लेखन तिथि : 29 फ़रवरी, 2021
यह पृष्ठ 246 बार देखा गया है
अरकान: मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
तक़ती: 1222 1222 1222 1222
×
आगे रचना नहीं है


पीछे रचना नहीं है
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें