तुम्हारी हँसी होती (कविता)

तुम्हारी हँसी होती
तो चुप हो, छिप जाते
हवा की ओट में

हँसी होती अगर
हवा पर रक़्साँ
खिल जाते तारामंडलों के
चुपचाप गुलाब
छिप जाते तुम्हारी
ओट में

हँसी होती तो चुप्पी होती
छिप जाते तारामंडलों की ओट में
हवा में गुलाबों की महक
रक़्सा होती

तुम्हारी हँसी होती तो
किस-किसकी हँसी होती
हवा की ओट में
गुलाब खिलते या मुरझाते हुए


रचनाकार : सुदीप बनर्जी
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