तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए (ग़ज़ल)

तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए,
मैं ज़हर खा रही थी कि तुम याद आ गए।

कल मेरी एक प्यारी सहेली किताब में,
इक ख़त छुपा रही थी कि तुम याद आ गए।

उस वक़्त रात-रानी मिरे सूने सहन में,
ख़ुशबू लुटा रही थी कि तुम याद आ गए।

ईमान जानिए कि इसे कुफ़्र जानिए,
मैं सर झुका रही थी कि तुम याद आ गए।

कल शाम छत पे मीर-तक़ी-'मीर' की ग़ज़ल,
मैं गुनगुना रही थी कि तुम याद आ गए।

'अंजुम' तुम्हारा शहर जिधर है उसी तरफ़,
इक रेल जा रही थी कि तुम याद आ गए।


रचनाकार : अंजुम रहबर
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