इंद्रधनुष के रंगों में रँगता है
जब दिन,
स्मृतियों में घुलती है
गुलाब की गंध
और खिल जाता है एक फूल
तुम्हारे नाम का।
तुम्हारा अभिज्ञान
रंगों की बौछारों के संग
उड़ते गुलाल-सा फैलता है
और तुम्हारी कविता की तरह
बिना रँगे मेरे परिधान को
छू जाता है, अनछुए।
समुद्र के उफानों की तरह
बार-बार लौट आता यह दिन
स्मृतियों में
बादल के टुकड़ों-सा
बरस जाता है,
तब मुझे लगता है,
वर्षों से सिंचित धरती में
अपनी जड़ों को पा लिया है
मैंने।
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